भारत सबसे प्राचीन और अद्भुत शिल्पकला के मंदिरों वाला देश
है। यहाँ पर बहुत से प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर मौजूद है जिनके पीछे अनेकों राज़
छिपे हुए है। इन मंदिरों के राज़ आज तक विज्ञान भी नहीं खोज पाया है।
आज हम आपको बताएँगे भारत के ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में
जो एक वर्ष में केवल एक दिन ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। और सारा साल बंद रखा
जाता है। आश्चर्य की बात यह है है कि मंदिर के सारा साल बंद होने के बावजूद मंदिर
के अंदर से किसी के चलने की आवाज़ निरंतर आती रहती है।
ऐसा ही एक मंदिर है जिसकी रक्षा स्वयं नागराज तक्षक
करते है। एक ऐसा मंदिर जहां पर पूरे वर्ष नागराज मौजूद रहते है। एक ऐसा मंदिर
जिसकी शक्ति का अनुमान इसके बंद पड़े दरवाजों से ही लगाया जा सकता है।
बहरत में नाग पूजा की परंपरा सदियों से चलती आ रही है
क्योंकि सनातन धर्म में माना जाता है कि सर्प देवातून के आभूषण होते है। नागों का
विश जहां एक तरफ हमारी जान ले सकता है वही नागों का यह विश एक प्रभावकारी औषधि में
बदल सकता है। जिसके प्रयोग से मनुष्य कई भयानक रोगों अथवा बीमारियों को नष्ट कर
सकता है।
वैसे तो भारत में नागों के कई मंदिर मौजूद है लेकिन आपको एक
ऐसे मंदिर के बारे में नहीं पता होगा जो पूरे साल बंद रहता है और केवल साल के एक
दिन नागपंचमी ही खोला जाता है।
इस मंदिर का नाम है “नागचंद्रेश्वर मंदिर” जो उज्जैन
में स्थित है। यह उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंज़िल पर स्थित है।
इस मंदिर को पूरे साल बंद रखा जाता है इसीलिए यहाँ आने वाले
भक्तों को इस बात का पता भी नहीं होता। इसे केवल नागपंचमी के दिन ही खोला जाता है।
तब यहाँ पर भक्तों की भारी भीड़ दिखाई देती है।
मान्यता है कि नागराज तक्षक इसी मंदिर में निवास करते है और
सिर्फ नागपंचमी के दिन ही बाहर निकलते है। इसीलिए केवल उस दिन ही भक्त यहाँ पर आ
सकते है। जबकि जब इस मंदिर के दरवाजे बंद होते है तब भी यहाँ पर अंदर से आवाज़ें
सुनाई देती है। इस मंदिर से चलने तथा रेंगने की आवाज़ें पूरा साल सुनाई देती है।
इस मंदिर की एक और अनोखी बात है इस मंदिर में स्थापित भगवान
शिव माता पार्वती और नाग की एक अद्भुत प्रतिमा। इस मंदिर में 11वीं शताब्दी में इस
प्रतिमा को स्थापित किया गया था।
यह प्रतिमा फन फैलाए नाग के आसान पर भगवान शिव और माता
पार्वती विराजमान है। इन्हीं के पास गणेश जी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। यह
एक दसमुखी नाग की प्रतिमा है। पूरे संसार में ऐसी कोई दूसरी प्रतिमा नहीं होगी
जहां भगवान शिव और माता पार्वती दसमुखी नाग शय्या पर विराजमान है।
पूरे विश्व में एकमात्र यही एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान
विष्णु नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती सर्प शय्या पर विराजमान है।
मंदिर की इस प्राचीन प्रतिमा में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश
जी के साथ दशमुखी नाग शय्या पर विराजित है। शिव शंकर के गले अथवा भुजाओं में भुजंग
लिपटे हुए हैं।
इस मंदिर की मान्यता है कि तक्षक नाग ने घोर तप करके भगवान
शिव को प्रसन्न किया और भगवान शिव ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया। तब से नागराज
तक्षक ने इसी स्थान पर एकांतवास करना शुरू कर दिया।
नागराज को अकेले रहना पसंद है इसीलिए इस मंदिर को पूरे साल
बंद रखा जाता है। लेकिन भक्तों के पालन के लिए केवल एक दिन इस मंदिर के द्वार खोले
जाते है और शेष दिन नागराज के सम्मान में इसे बंद रखा जाता है।
इस मंदिर के दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी प्रकार के
सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसीलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर
भक्तों कि लंबी कतार रहती है। कहते है कि यह कालसर्प दोष को भी नष्ट करता है।
जब किसी की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है तो उसे अपने जीवन में कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन इस मंदिर में केवल दर्शन करने मात्र से आपकी कुंडली से ही नहीं बल्कि आपके जीवन से भी कालसर्प दोष नष्ट हो जाता है।
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