जब अत्यंत क्रोधित हुए हनुमान जी को शांत करने के लिए श्री कृष्ण को लेना पड़ा राम अवतार

Hanuman vs balram, garud and satyabhama

भगवान हनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। इसीलिए वे त्रेता युग में, द्वापर युग में तथा कलयुग में भी जीवित है। एक बार द्वापर युग में हनुमान जी का क्रोध शांत करने के लिए भगवान श्री कृष्ण को श्री राम का तथा रुक्मणी को माता सीता का अवतार लेना पड़ा था। आइये जानते हैं कब और क्यों।


महाभगवत पुराण के अनुसार ये बात उस समय की है जब श्री कृष्ण के भाई बलराम अपने साहस, पत्नी सत्यभामा अपनी सुंदरता, और कृष्ण जी के वाहन गरुड़ अपनी शक्ति के नशे में चूर हो गए थे।


जब श्री कृष्ण ये सब देखा तो उन्होने उनके घमंड को तोड़ने के लिए एक लीला रची। जिसका किसी को भी आभास नहीं था।


एक दिन देवऋषि नारद इंद्र देव की देव सभा में आए। उनके सम्मान में वहाँ उपस्थित सभी देवता खड़े हो गए, किन्तु श्री कृष्ण के वाहन गरुड़ को छोड़ कर। गरुड़ के ये व्यवहार नारद जी को अच्छा नहीं लगा।


उन्होने जब इसका कारण गरुड़ को पूछा तो गरुड़ ने कहा कि मैं एक शक्तिशाली तथा सभी पक्षियों में सर्वश्रेष्ठ हूँ। मैं ऐसे किसी भी ऋषि के सम्मान में खड़ा नहीं हो सकता जो केवल इधर से उधर भटक कर दुनिया भर की बातें बनाता हो।


यह सुनकर नारद मुनि को गहरा धक्का लगता है। अगले ही दिन वे इस घटना को बताने के लिए श्री कृष्ण के महल पहुँच जाते है। जब श्री कृष्ण ने नारद मुनि को देखा तो वे तुरंत खड़े हो गए और नारद मुनि के चरणों को धोकर उन्हें आदरपूर्वक बैठाया। इसके बाद उन्होने नारद मुनि से देव लोक के बारे में पूछा।


तभी नारद जी ने श्री कृष्ण को पूरी घटना बताई। गरुड़ के इस व्यवहार पर कृष्ण जी ने नारद मुनि से क्षमा मांगी और उनसे कहा कि वो कृपा करके के सत्यभामा को बुलाकर लाएँ। पहले तो नारद मुनि चौंक गए कि सत्यभामा का इससे क्या लेना-देना है और आखिर वे क्यों बुलाएँ सत्यभामा को? फिर भी वो सत्यभामा को बुलाने चले जाते है।


लेकिन सत्यभामा तो अपने शृंगार में व्यस्त थी। बार-बार वे अपने आप को शीशे में निहार रही थी। अपने आभूषणों की चमक में उन्हे ओर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था।


तभी नारद मुनि ने उन्हे आवाज़ लगाई, “सुनो सत्यभामा श्री कृष्ण आपको बुला रहे हैं!” लेकिन सत्यभामा ने कोई उत्तर नहीं दिया। वो अपनी सुंदरता में ही खोई रहीं। नारद मुनि को फिर अपमान का घूंट पीना पड़ा। वो तत्काल श्री कृष्ण के पास गए। और उन्हे सारी बात बताई।


यह सुनकर उन्होने नारद मुनि से अनुरोध किया कि वे जाएं और केले के जंगल में तपस्या कर रहे हनुमान जी को बुलाएँ। हनुमान जी का नाम सुनकर नारद मुनि फिर सोच में पड़ गए कि अब भला हनुमान जी बीच में कहाँ से आ गए? फिर वे कृष्ण जी की बात का अनुसरण करते हुए केले के जंगल में पहुँच गए।


Shree hanuman

तभी उन्हें तपस्या में लीन हनुमान जी नज़र आए। वो उनके पास गए और कहा, “हे वायु-पुत्र, आपको श्री कृष्ण बुला रहे हैं।” तपस्या में बाधा पड़ते ही हनुमान जी को बहुत क्रोध आया। परंतु उन्होने संयम बनाए रखा और फिर से एकाग्रचित होकर तपस्या करने लगे।


लेकिन जैसे ही दोबारा नारद जी ने हनुमान जी से कहा कि “हे वायु-पुत्र, आपको श्री कृष्ण बुला रहे हैं।” तभी हनुमान जी ने क्रोध में प्रशन किया कि “कौन कृष्ण? मैं किसी कृष्ण को नहीं जनता।“ और इतना कह कर वे पुन: ध्यानमग्न हो गए।


फिर नारद मुनि को ध्यान आया कि हनुमान जी तो केवल श्री राम के परम भक्त हैं वो केवल श्री राम कि ही पूजा करते हैं और उन्हीं की आज्ञा का पालन करते हैं। उन्हे ज्ञात नहीं है कि श्री कृष्ण कौन है। केवल राम-नाम ही एक दिव्य मंत्र है जो उनसे कुछ भी करवा सकता है।


इसके बाद नारद मुनि राम नाम की धुन गाने लगे। राम नाम की धुन सुनकर हनुमान जी सम्मोहित हो गए और नारद मुनि जी के पीछे-पीछे चलने लगे। राम नाम की धुन का सहारा लेकर नारद मुनि हनुमान जी को द्वारका तक ले गए।


लेकिन वहाँ पहुँच कर नारद मुनि ने जैसे ही राम नाम की धुन बंद की हनुमान जी होश में आ गए और जब उन्होने देखा कि वो जंगल में नहीं है बल्कि दूसरी जगह आ पहुंचे हैं, तो उन्हे बहुत क्रोध आया। उन्होने क्रोध में द्वारिका महल के बगीचे को तहस नहस करना प्रारंभ कर दिया।


वहीं दूसरी ओर जब बलराम को पता चला कि किसी वानर ने नगर में उत्पात मचाया हुआ है तो उन्होने ने हनुमान जी को पकड़ने के लिए गरुड़ को भेजा। बलराम जी को तनिक भी आभास नहीं था कि गरुड़ को वो जिस से लड़ने भेज रहे है वो वो कोई साधारण वानर नहीं है बल्कि स्वयं हनुमान जी है। हनुमान जी के सामने गरुड़ की शक्ति बहुत तुच्छ थी।


हनुमान जी ने पल भर में ही गरुड़ के घमंड को ध्वस्त कर दिया। अब स्वयं बलराम को हनुमान जी को रोकने के लिए सामने आना पड़ा। लेकिन हनुमान जी ने बलराम के घमंड को भी चुटकियों में नष्ट कर दिया। अब ऐसा कोई नहीं था जो हनुमान जी के क्रोध को शांत कर सकता था।


आखिर में बलराम ने श्री कृष्ण को बुलाया। तब श्री कृष्ण ने बलराम को बताया कि वो कोई साधारण वानर नहीं है बल्कि हनुमान है और अब उनका क्रोध केवल श्री राम ही शांत कर सकते हैं।


उसके बाद उन्होने सत्यभामा को बुलाया और कहा कि ”हे सत्यभामा, माता सीता बनकर आइये।” ये सुनकर सत्यभामा वापिस महल में चली गई और अपने आभूषण तथा सुंदर वस्त्र बदलकर फटे हुए कपड़े धरण करके बाल फैलाकर वापिस आई।


सत्यभामा को लगा कि श्री कृष्ण शायद उनके वनवास वाले सीता के इस रूप को देखकर प्रसन्न हो जाएंगे। लेकिन श्री कृष्ण तो उन्हे देखकर हंसने लगे और उनसे कहा कि मेरे पास सीता बनके आइए। सत्यभामा को कुछ भी समझ नहीं आया। वो वापस गई और फिर से खूब सारे आभूषण और सुंदर वस्त्र धरण करके आई।


श्री कृष्ण ने उन्हे देखा और फिर से ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए उनसे कहने लगे कि आप तो सीता के स्थान पर आभूषणों से लथपथ होकर आ गई। मैंने आपसे सीता बनकर आने को कहा था। यह सुनते ही सत्यभामा का घमंड चूर-चूर हो गया।


इसके बाद श्री कृष्ण ने रुक्मणी को आवाज़ दी और कहा कि हे रुक्मणी, सीता बनकर आइए। ये सुनते ही रुक्मणी श्री कृष्ण के पास भाव-विभोर होकर दोड़ी चली आई और अपने पुत्र जैसे हनुमान के बारे में जानकर उनकी आँखों में आँसू झलक आए। क्योंकि हनुमान उन्हे अपनी माता मानते थे।


इसके बाद श्री कृष्ण और रुक्मणी श्री राम और माता सीता बनकर हनुमान जी के समक्ष गए और जैसे ही हनुमान जी ने श्री राम और माता सीता को देखा वो बच्चे की तरह रोने लगे और उनके चरणों में गिर गए। श्री राम ने उनसे कहा कि मेरे प्रिय हनुमान मैं तुमसे मिलने आया हूँ।  मैं तुम्हारा त्रेता युग वाला राम हूँ, लेकिन द्वापर युग में मैं कृष्ण हूँ। इस समय मैं तुम्हारे सामने राम और कृष्ण दोनों ही रूप में हूँ।


यह सुनकर हनुमान प्रभु श्री राम के गले लगकर रोने लगे।

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