इन पाप के कारण नहीं पूजा जाता भगवान ब्रह्मा को, जानकार हैरान हो जाओगे!

Brahma ji ki pooja kyon nahin hoti

हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को त्रिदेव अथवा त्रिमूर्ति के नाम से जाना जाता है। क्योंकि ब्रह्मा देव इस सृष्टि के रचयिता है, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार है, और भगवान शिव अर्थात महेश सृष्टि के संहारक देवता हैं। पुराणों के अनुसार ये तीनों देव एक ही है बस इनके नाम अलग-अलग है। इनके भक्त इनकी अलग-अलग रूपों में पूजा करते हैं।


लेकिन एक आश्चर्य की बात यह है की सृष्टि तथा सभी जीव-जंतुओं को उत्पन्न करने वाले, पूरे विश्व की उत्पत्ति करने के बावजूद भी ब्रह्मदेव की पूजा नहीं की जाती। जबकि चारों वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद) भी ब्रह्मा जी से उत्पन्न हुए, लेकिन फिर भी उनकी पूजा क्यों नहीं की जाती?


सनातन काल में देवताओं और असुरों ने जितनी भी तपस्या की सबसे ज़्यादा तपस्या ब्रह्मा जी की की और सबसे ज़्यादा आशीर्वाद तथा वरदान ब्रह्मा जी से प्राप्त किए। परंतु प्रचलित समाज में ब्रह्मा जी की कोई पूजा नहीं करता ना ही कोई त्योहार अथवा व्रत इनके नाम पर रखा जाता है। लेकिन ऐसा क्यों है?


इसके पुराणों में कई कारण बताए गए हैं। जी हाँ दोस्तों, इसके पीछे भी कई पौराणिक कथाएँ है जिसके बारे में आज हम आपको विस्तारपूर्वक बताएँगे। तो आइये जानते हैं।



क्यों नहीं होती ब्रह्मदेव की पूजा-


पहला कारण- देवी सावित्री का श्राप

एक पौराणिक कथा के अनुसार देवी सावित्री के श्राप के कारण भगवान ब्रह्मा की संसार में पूजा नहीं की जाती। कथा के अनुसार ब्रह्मदेव को जगत के उद्धार के लिए यज्ञ करने का विचार किया। यज्ञ के स्थान के चुनाव के लिए उन्होने एक कमल के फूल को पृथ्वी पर भेजा और जिस स्थान पर वो कमल का फूल गिरा उसी स्थान को यज्ञ के लिए चुना गया।


जिस जगह पर कमल गिरा उसी जगह ब्रह्मदेव का मंदिर बनवाया गया और ये स्थान राजस्थान का  पुष्कर शहर, जहां ये पुष्प गिरा वहाँ पर एक तालाब का निर्माण भी हुआ था।


पुष्कर में ब्रह्मा जी को जोड़े में यज्ञ करना था और उस समय उनकी पत्नी देवी सावित्री ब्रह्मलोक में थी और ब्रह्मदेव स्वयम भूलोक में थे। तो उन्होने अपनी पत्नी देवी सावित्री को यज्ञ स्थल पर पहुँचने के लिए संदेश भिजवाया। परंतु उनकी पत्नी समय पर यज्ञ स्थल पर नहीं पहुँच पाईं और यज्ञ का शुभ- मुहूर्त निकलता जा रहा था और यज्ञ करना बहुत जरूरी था।


तो ब्रह्मा जी ने क्या किया, उन्होने एक स्थानीय ग्वाला बाला गायत्री से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए। जाट इतिहास के अनुसार गायत्री देवी राजस्थान के पुष्कर की रहने वाली थी और वेद-ज्ञान में पारंगत होने के कारण ये बहुत विख्यात थी।


Brahmadev in pushkar

थोड़ी देर बाद वहाँ सावित्री देवी पहुँच गईं। लेकिन यज्ञ में अपने स्थान पर ब्रह्म देव की पत्नी के स्थान पर किसी और स्त्री को को देखा कर वो बहुत क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया और कहा की जाओ आप सृष्टि के रचयता हैं किन्तु आज  के बाद इस लोक में आपकी कभी पूजा नहीं होगी। 


सावित्री के इस रूप को देख कर सभी देवता डर गए और उनसे विनती करने लगे की वे अपना श्राप वापिस ले लीजिए। जब बाद में देवी सावित्री का क्रोध शांत हुआ तो तो उन्होने कहा कि धरती पर केवल पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। इसके अलावा कहीं और जो कोई आपका दूसरा मंदिर बनाएगा, उसका विनाश हो जाएगा।


कहते हैं क्रोध शांत होने के बाद देवी सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं। मान्यता है कि आज भी देवी सावित्री वहाँ मौजूद है और अपने भक्तों का कल्याण करती हैं। पुष्कर में जितनी अहमियत ब्रह्मा जी कि है उतनी ही देवी सावित्री कि भी है। 


हिंदू धर्म में देवी सावित्री को सौभाग्य की देवी कहा जाता है, और देवी के इस मंदिर में पूजा करने से सुहाग की लंबी उम्र होती है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।


दूसरा कारण- भगवान शिव का अभिशाप

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच विवाद छिड़ गया कि हम दोनों में से सबसे श्रेष्ठ कोन है?


देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया कि भगवान शिव को बीच हस्तक्षेप करना पड़ा। इतने में वहाँ एक विराट लिंग उत्पन्न हुआ, जिसका न कोई आदि था और न ही अंत। तो भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो भी इस लिंग के छोर तक पहले पहुँच जाएगा वो सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा। इस पर भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने सहमति व्यक्त की। तो दोनों देवता विपरीत दिशाओं में लिंग का छोर ढूँढने के लिए चल पड़े।


कई साल बीत गए लेकिन दोनों देवताओं में किसी को भी छोर नहीं मिला। भगवान विष्णु ने यह बात स्वीकार की और वापिस आ गए और बोले की यह लिंग असल में अनंत है।


लेकिन ब्रह्मदेव ने इसमे चालाकी करने की कोशिश की। उन्होने केतकी फूल से कहा की वो झूठ बोले की ब्रह्मा ने लिंग का छोर ढूंढ लिया है, और फूल ने वैसा ही बोला।


उस लिंग में से भगवान शिवजी प्रकट हुए और उन्होने ब्रह्मा का झूठ सुनकर बहुत क्रोधित हो गए। शिवजी ने ब्रह्मदेव को केतकी फूल को श्राप दे दिया। भगवान शिव बोले कि ब्रह्मदेव आपकी किसी भी लोक में कभी पूजा नहीं होगी और केतकी फूल को भी श्राप दिया और बोला किसी भी हिंदू अनुष्ठान में केतकी के फूल का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।


शिव पुराण के अनुसार इसीलिए ब्रह्मदेव कि पूजा नहीं की जाती।


तीसरा कारण- अप्सरा मोहिनी का श्राप

चूंकि ब्रह्मदेव जगत पिता एवं देवता थे तो उनकी काया बहुत ही मनमोहक थी। उनकी इस मनमोहक काया को देखकर स्वर्ग की एक अप्सरा मोहिनी उन पर कामासक्त हो चुकी थी। एक बार जब ब्रह्मा जी समाधि में लीन थे तो अप्सरा मोहिनी ब्रह्मा जी के समीप आकर वहीं आसन लगाकर बैठ गईं।


जब ब्रह्मा जी की समाधि टूटी तो तो उन्होने से मोहिनी से पूछा, देवी! आप स्वर्ग को छोड़कर मेरे समीप ब्रह्मलोक में क्यों बैठीं हैं?


तो मोहिनी ने कहा, “हे ब्रह्मदेव! मेरा तन और मन आपके प्रति प्रेमोनमत्त हो रहा है। कृपया आप मेरा प्रेम निवेदन स्वीकार करें।“


ब्रह्मदेव मोहिनी के कामभाव को दूर करने के लिए उनको नीतिपूर्ण ज्ञान देने लगे कि यह सही नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता। तो मोहिनी ब्रह्मा जी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी कामुक अदाओं से रिझाने लगीं।


जब कोई मार्ग न मिला तो मोहिनी के मोहपाश से बचने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने इष्ट श्रीहरि को याद किया।


उसी समय सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। सप्तऋषियों ने ब्रह्मा जी के समीप मोहिनी को बैठे हुए देखकर उनसे पूछा, यह स्वर्गलोक की अप्सरा आपके साथ क्यूँ बैठी है? तो ब्रह्मा जी ने अपनी छवि को बचाने के लिए झूठ बोला कि “ये अप्सरा नृत्य करते करते थक गई तो विश्राम करने के लिए पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी हुई है।“


सप्तऋषियों ने अपनी योगबल से ब्रह्मा जी के झूठ को पहचान लिया और वे मुस्कुरा कर वहाँ से चले गए। परंतु ब्रह्मा जी से ऐसे शब्द अपने लिए सुनकर मोहिनी क्रोधित हो गईं और बोली, मैं तो आप से अपनी काम इच्छाओं की पूर्ति चाहती थी किन्तु आपने मुझे पुत्री का दर्जा दे दिया। 


आपको अपने मन पर और संयम पर बहुत घमंड है तभी अपने मेरे सच्चे प्रेम को ठुकरा दिया। मैं तो आपसे सच्चे हृदय से प्रेम करती थी परंतु अपने मेरे प्रेम को ठुकरा दिया तो मैं आपको श्राप देती हूँ कि इस जगत में आपको कोई भी नहीं पूजेगा।


तो इस तरह मोहिनी ने भी भगवान ब्रह्मा को श्राप दिया था, इसीलिए भी ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती।


चौथा कारण- माँ सरस्वती का अभिशाप

एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्मा जी नें ब्रह्मांड के निर्माण के बाद देवी सरस्वती को बनाया था। सरस्वती को बनाने के बाद ब्रह्मा जी उनकी खूबसूरती से मोहित हो गए और उनको अपनी पत्नी के रूप में पाने के लिए उत्सुक हो गए। देवी सरस्वती ब्रह्मा जी के साथ कोई संबंध नहीं बनाना चाहती थी तो उन्होने अपने रूप बादल लिया। लेकिन ब्रह्मा ने हार नहीं मानी। 


अंत में माँ सरस्वती परेशान हो गयी ओर क्रोध में आकर ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि “इस जगत का निर्माण करने के बावजूद भी इस जागत में कोई उनकी पूजा नहीं करेगा।” इस कारण से भी ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाती है।


Mata saraswati and Lord brahma

श्राप सुनते ही ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को समझाया कि मैं तो सृष्टि के निर्माण के लिए आपका सहयोग प्राप्त करने के लिए अनुरोध कर रहा हूँ। यदि अप सहयोग नहीं करेंगी तो सृष्टि का निर्माण कैसे होगा। ऐसा सुनकर देवी सरस्वती अपना श्राप वापिस लेना चाहती थी, परंतु “वाणी की देवी” होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाईं। अंत में उनका श्राप तो पूरा होना ही था।


सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण के अनुसार देवी सरस्वती जी चारों दिशाओं में छिपती रहीं परंतु ब्रह्मा जी की नज़रों से नहीं बच पाईं। बाद में वे जाकर आकाश में छिप गईं। लेकिन ब्रह्मा जी के पांचवे सिर ने उनको ढूंढ ही लिया।


अंतत: सृष्टि के निर्माण में सहयोग करने के अनुरोध को देवी सरस्वती ने स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी से विवाह कर लिया। इसके बाद ब्रह्मा जी और माँ सरस्वती 100 वर्षों तक पृथ्वी पर रहे। उनके “स्वयंभू मनु” नामक पुत्र हुआ। स्वयंभू मनु धरती का प्रथम मानव था। सभी मनुष्य उनकी ही संतान हैं।


हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता इन चार कथाओं से हमें पता चलती है कि चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो या कोई देवता ही क्यों ना हो, अगर उसका आचरण गलत है, उसने किसी का दिल दुखाया है उसकी सज़ा उसे अवश्य मिलती है।

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