महाभारत की सबसे विचित्र कहानी- पांडवो के पिता कौन थे?

Panadavon ki janm katha

महाभारत की कहानियाँ रोचक ही नहीं बल्कि विचित्र भी हैं। पांडव हस्तिनापुर के राजा पांडु और उनकी दो पत्नियों कुंती व माद्री के शक्तिशाली और बड़े पराक्रमी पुत्र थे। दो-दो पत्नियाँ होने के बावजूद भी पांडु एक श्राप के कारण पिता होने का सुख प्राप्त नहीं कर सके। पाँच पांडवों का जन्म राजा पांडु के वीर्य के बिना हुआ था। लेकिन कैसे? आइये जानते हैं महाभारत की सबसे रोचक कहानी। पाँच पांडवों के जन्म की कथा!


पांडु को श्राप: जब पांडु पिता नहीं बने थे तब वे एक बार अपनी दोनों पत्नियों सहित जंगल  में आखेट के लिए गए। वहाँ उन्हे एक मृग का जोड़ा दिखाई दिया। वहाँ उन्होने शिकार के लिए मैथुन करते हुए मृग के जोड़े पर बाण चला दिया। वह बाण सीधा मृग को लगा जो मृग के वेश में ऋषि किदंबा थे जो अपनी पत्नी के साथ सहवास कर रहे थे।


जब पांडु ऋषि के पास पहुंचे तब वे अपनी आखरी सांसें गिन रहे थे। ऋषि ने क्रोधित अवस्था में राजा पांडु को श्राप दिया कि, “हे राजन, जब भी तुम किसी महिला से सहवास करोगे, तुम्हारी तुरंत मृत्यु हो जाएगी!” पांडु ने ऋषि से क्षमा भी मांगी, परंतु तब तक वे मर चुके थे।


इस श्राप से पांडु बहुत दुखी हुए और अपनी पत्नियों को श्राप के बारे में बताया और बोला,हे देवियों, मैंने अपनी सभी वासनाओं का त्याग कर दिया है, इसलिए मैं वन में ही निवास करूंगा। आप कृपया हस्तिनापुर लौट जाएं।“


पांडु की दोनों पत्नियों ने कहा कि “आर्यपुत्र , हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती। आप हमें भी अपने साथ वन में निवास करने दें।“ पांडु ने उनका अनुरोध स्वीकार किया और वे वन में अपनी दोनों पत्नियों के साथ निवास करने लगे।  


कुंती ने दिया युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन को जन्म: इसी दौरान राजा पांडु ने अमावस्या के ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शन के लिए जाते हुए देखा और उन्होने ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा कि हे राजन! कोई भी नि: संतान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अत: हम आपको अपने साथ नहीं ले जा सकते।


ऋषि-मुनियों की बात सुनने के पश्चात पांडु अपनी पत्नी से कहने लगे हे कुंती! मेरा यह जीवन व्यर्थ हो गया है, क्योंकि संतानहीन पुरुष पित्र-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता।


कुंती बोली, “हे आर्यपुत्र, ऋषि दुर्वासा ने मुझे ऐसा मंत्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता का आह्वान करूँ।“ इस पर पांडु ने धर्म के देवता को आमंत्रित करने के आदेश दिया। धर्म ने कुंती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम “युधिष्ठिर” रखा गया।


कालांतर में पांडु ने कुंती को पुन: दो देवता वायुदेव तथा इंद्रदेव को आमंत्रित करने का आदेश दिया। कुंती ने ऐसा ही किया पहले वायुदेव से पांडु को भीम तथा इंद्रदेव से अर्जुन नाम के दो पुत्र प्राप्त हुए।


माद्री बनी नकुल तथा सहदेव की माता: तत्पश्चात पांडु की आज्ञा से कुंती ने माद्री को भी मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्विनी कुमारों को आमंत्रित किया और उनसे उन्हें दो पुत्र नकुल तथा सहदेव प्राप्त हुए।


पांडु की मृत्यु: एक दिन राजा पांडु पत्नी माद्री के साथ वन में सरिता नदी के तट पर गए। वहाँ राजा पांडु तप करने लगे और माद्री स्नान करने लगीं। वहां का वातावरण अत्यंत रमणीक था और मंद-मंद शीतल वायु चल रही थी। माद्री को स्नान करते हुए देख राजा पांडु का मन चंचल हो उठा और वे माद्री से सहवास करने लगे। जैसे ही वे माद्री के करीब गए श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई। माद्री भी राजा पांडु की चिता के साथ सती हो गई और पुत्रों के पालन-पोषण का भार कुंती के ऊपर आ गया।


कुंती अपने पांचों पुत्रों के साथ हस्तिनापुर लौट आई। इसी तरह ही सभी पांडवों को देवताओं की तरह ही दिव्य गुण प्राप्त हुए थे।

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