भगवान शिव के 19 अवतारों का वर्णन | 19 Avataras of Lord Shiva

Avatars of Shiva

भगवान शिव वो हैं जिनका ना आदि हैं और ना ही अंत। हिन्दू धर्म-ग्रन्थों के अनुसार सृष्टि के सृजन, पालन और विनाश का कार्य परमात्मा ने अपनी ही तीन शक्तियों को दिया हुआ है। जिनहे त्रिदेव या त्रिमूर्ति भी कहते हैं। सृजन यानि कि निर्माण का दायित्व ब्रह्मदेव, पालन का दायित्व श्री हरी विष्णु और विनाश का दायित्व भगवान देवों के देव महादेव के पास है।


भगवान विष्णु की तरह भगवान शिव ने भी सृष्टि के उद्धार के लिए कई अवतार लिए हैं। आपने भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में तो सुना होगा परंतु भगवान शिव के अवतारों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। शिवपुराण में महादेव के अनेकों अवतारों का उल्लेख मिलता है।


आइये आज हम आपको बताते हैं भगवान शिव के उन 19 अवतारों और उनके पीछे छुपे रहस्यों के बारे में। कई वेदों-पुराणों, ग्रन्थों में भगवान शिव के अवतारों की महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।


Veerbhadra Avatar


वीरभद्र अवतार: पुराणों के अनुसार भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था जब प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपने देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ, तब उन्होने क्रोध में आकर अपनी सिर की एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्व भाग से भयंकर वीरभद्र प्रकट हुए। शिवजी के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।


पिप्पलाद अवतार: मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बहुत बड़ा महत्व है। शनिदेव पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा के अनुसार पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा कि क्या कारण है कि मेरे पिता ऋषि दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए?


देवताओं ने बताया कि शनिदेव की दृष्टि से ही ऐसा संयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बहुत क्रोधित हुए। उन्होने शनि को नक्षत्र मण्डल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी क्षण आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनिदेव को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 वर्ष तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से भगवान पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।


शिव पुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही भगवान शिव के इस अवतार का नामांकरण किया था।


नंदी अवतार: भगवान शिव सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शिव का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों का प्रेम का संदेश देता है।


नंदी अर्थात बैल कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। कथा के अनुसार शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उन्हें संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने आयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की।


Nandi Avatar

तब भगवान शिव ने स्वयं शिलाद के यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपने गणों का अध्यक्ष बनाया। उसी तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मारुतों की पुत्री सुयशा के साथ नदी का विवाह हुआ।


भैरव अवतार: शिव महापुराण में भैरव को शिव का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शिव की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखाई दी। उन्हें देखकर ब्रह्मा जी ने कहा, चन्द्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो, मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा जी की ऐसी बात सुनकर महादेव क्रोध में आ गए। उन्होने उस पुरुषाकृति से कहा, काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भगवान शिव से इन वरों को प्राप्त कर काल भैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्र्हमदेव के पंचवे सिर को काट दिया।


Bhairav Avatar


ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काटने के कारण काल भैरव ब्रह्म हत्या के पाप के दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशी वासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गयी है।


अश्वत्थामा अवतार: महाभारत के अनुसार पांडवों और कौरवों के गुरु, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शिव को पुत्र रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतरित होंगे।


Ashwatthama Avatar


समय आने पर सांत्विक रुद्र ने अपने अंश से द्रोणाचार्य के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में जन्म लिया। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा अमर हैं। वे आज भी धरती पर निवास करते हैं।


कलयुग में ऐसी कई घटनाएँ हैं जिसमें लोगों का कहना है कि उन्होने अश्वत्थामा को देखा है अथवा उनके दर्शन किए है।


शरभावतार: शरभावतार में भगवान शिव का रूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शराभ पंछी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जन्तु जो शेर से भी शक्तिशाली था) उसके समान था। इस अवतार में शिव जी ने नरसिंह (हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था परंतु वध के पश्चात उनका क्रोध शांत नहीं हुआ जिससे सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई) की क्रोधाग्नि को शांत किया था।


Sharbha avatar


लिंगपुराण में भगवान शिव के शरभावतार की कथा है। नरसिंह अवतार को शांत करने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और इसी अवतार में नरसिंह के सामने गए। किन्तु उनकी क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभावतार ने अपनी पुंछ से नरसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नरसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई।


ग्रहपति अवतार: नर्मदा नदी के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वनर नाम का एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थी। शुचिष्मती ने बहुत काल तक संतानहीन रहने के कारण एक दिन अपनी पति से शिव के समान एक पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। शुचिष्मती की इच्छा पूर्ण करने के लिए मुनि काशी आ गए और यहाँ उन्होने घोर ताप के द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की।


एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालक रूप धारी शिवजी की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शुच्ष्मती के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया।


कालांतर में शुचिष्मती गर्भवती हुई और भगवान शिव शुचिष्मती के गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट हुए। कहते हैं ब्रह्मा जी ने ही उस बालक का नाम ग्रहपति रखा था।


ऋषि दुर्वासा: भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में से एक ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। हिन्दू धर्म के अनुसार सती अनुसुइया के पति महाऋषि अत्री ने ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्र कामना से घोर तपस्या की थी। उनके ताप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए और कहा कि हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे। जोकि त्रिलोक में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए, भगवान विष्णु के अंश से दत्तात्रेय भगवान उत्पन्न हुए और भगवान शिव के अंश से ऋषि दुर्वासा ने जन्म लिया।


हनुमान अवतार: भगवान शिव के वीर हनुमान अवतार सभी अवतारों में से श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शिव ने एक वानर का रूप धारण किया था। सप्तऋषियों के संकल्प से ही भगवान शिव ने अंजनी माता के गर्भ से वानर रूप में अवतरित हुए। 


Hanuman Avatar


भगवान हनुमान जी भक्ति के प्रतीक हैं। अपने प्रभु श्री राम की सेवा करने तथा उनके  सभी कार्य को पूर्ण करर्ने के उद्देश्य से ही भगवान शिव ने माता अंजनी के गर्भ से हनुमान अवतार में जन्म लिया।


वृषभ अवतार: भगवान शिव ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शिव ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रन्थों के औसर वो जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तब उन्हें वहां बहुत सी चन्द्रमुखी स्त्रियाँ दिखाई दी। 


Vrishabh Avatar


भगवान विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। भगवान विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्मा जी ऋषि-मुनियों को लेकर भगवान शिव के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव ने वृषभ रूप धरण कर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों का संहार किया था।


यतिनाथ अवतार: महादेव ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होने इस अवतार में अतिथि  बनकर भील दंपत्ति की परीक्षा ली थी। जिसके कारण भील दंपत्ति को अपने प्राण गँवाने पड़े।


Yatinath Avatar


हिन्दू धर्म के अनुसार अरुणाचल पर्वत के समीप शिव भक्त आहुक-आहुका भील दंपत्ति रहते थे। एक बार भगवान शिव यतिनाथ वेश में उनके घर आए। उन्होने भील दंपत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपनी पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुष-बाण देकर बाहर रात बिताने और यति को घर में रात व्यतीत करने का प्रस्ताव रखा। इस तरह धनुष बाण लेकर बाहर चला गाय। प्रात: काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक को मार डाला। इस पर यति नाथ बहुत दुखी हुए। तब आहुका ने उन्हे शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन करना धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं।


जब आहुका अपने पति की चिता अग्नि में जलने लगी तो भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होने अगले जन्म में पुन:  अपने पति से मिलने का उसे वरदान दिया।


कृष्णदर्शन अवतार: भगवान शिव ने कृष्णदर्शन अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णतय: धर्म का प्रतीक है। हिन्दू धर्म के अनुसार इसवाकु वंश के श्राद्ध देव की नौंवी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। वो विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल रहे। जब बहुत दिनों तक ना लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब ये बात ज्ञात हुई तब नभग अपने पिता के पास आए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके उनके धन को प्राप्त करें।


तब नभग ने यज्ञ भूमि पर पहुँच कर वैसव देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ सम्पन्न करवाया। ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए।


उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विद-विवाद होने पर कृष्णदर्शन ने उसे अपने पिता से ही निर्णय करने को कहा।


नभग के पूछने पर श्राद्ध देव ने कहा वे भगवान शंकर है यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उनकी है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी कि स्तुति की और उनकी पूजा की।


अवधूत अवतार: भगवान शिव ने अवधूत अवतार लेकर देवराज इंद्र के अभिमान को चकना चूर किया था। हिन्दू धर्म-पुराणों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इन्द्र भगवान शंकर के दर्शन के लिए कैलाश मानसरोवर पर गए। इन्द्र की परीक्षा लेने के लिए शंकर जी ने अवधूत रूप धरण कर इंद्रदेव का मार्ग रोक लिया।


इन्द्र ने उस पुरुष से अवज्ञ पूर्वक उसका परिचय पूछा तो भी वे मौन रहा। इस पर क्रोध होकर जब इन्द्र ने अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोड़ना चाहा तभी उनका हाथ स्तब्ध हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने भगवान शिव को पहचान कर अवधूत की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्द्र को क्षमा कर दिया।


भिक्षुवर्य अवतार: भगवान शिव देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी वो ही हैं। भगवान शंकर का अवतार यही संदेश देता है। हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार विधर्व नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला। उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छुपकर अपने प्राण बचाए।


समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घड़ियाल ने अपना आहार बना लिया। तब वह बालक भूखा-प्यासा तड़पने लगा। इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहाँ पहुंची और भगवान शिव ने भिक्षुवर्य का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया। तब यह भी कहा कि वो बालक विधर्व नरेश सत्यरथ का पुत्र है। यह सब कहकर भिक्षुवर्य रूप धारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखलाया।


शिव के आदेशानुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया। बड़ा होकर उस बालक ने शिव जी की कृपा से दुश्मनों को हराकर वापिस अपना राज्य पा लिया।


सुरेश्वर अवतार: भगवान शिव का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शिव ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमरपद का वरदान दिया।


हिन्दू धर्म के अनुसार व्याघ प्रसाद के पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर रहता था। वह हमेशा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी माँ ने अपने पुत्र की आशा को पूर्ण करने के लिए उसे शिवजी की शरण में जाने को कहा। इस पर उपमन्यु वन में जाकर “ॐ नम: शिवाय” का जाप करने लगा।


शिव जी ने सुरेश्वर अवतार का रूप धरण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगे। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर सुरेश्वर को मरने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु को अपने प्रति दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिये तथा सिरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया और उसकी प्रार्थना पर शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।


किरात अवतार: किरात अवतार में भगवान शिव ने पांडु पुत्र अर्जुन की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल कपट से पांडवों का राज्य छीन लिया था। और पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास में जाना पड़ा था।


वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूँड नमक दैत्य अर्जुन को मरने के लिए सूअर का वेश धरण कर वहाँ पहुंचा। अर्जुन ने सूअर पर अपने बाण से प्रहार किया।


उसी समय भगवान शिव ने भी किरात अवतार धरण कर उसी सूअर पर बाण चलाया। शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान नहीं पाए और सूअर का वध उनके बाण से हुआ ऐसा कहने लगे। इसी बात पर दोनों में विवाद हो गया और उन्होने किरात अवतार धारण किए हुए भगवान शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव बहुत ही ज़्यादा प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक रूप में आकर पांडवों को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।


सुनटनर्तक अवतार: माता पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिव जी ने सुनटनर्तक अवतार धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिव ने इतना सुंदर और मनमोहक नृत्य किया कि सब वहाँ प्रसन्न हो गए। हिमाचल ने नटराज से भिक्षा मांगने ओ कहा तो शिव ने माता पार्वती को मांग लिया।


हिमाचल राज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेश धारी शिव जी पार्वती को अपना रूप दिखाकर वहाँ से चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल राज को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होने अपनी पुत्री पार्वती को शिव जी को देने का निर्णय लिया।


ब्रह्मचारी अवतार: प्रजापति दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब माता सती ने हिमाल्य राज के घर जन्म लिया तो वे शिव जी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। उनकी परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेश धारण कर माता पार्वती के पास पहुंचे।


माता पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उनके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिवजी निंदा करने लगे तथा उन्हें शमशानवासी और कापालिक भी कहा। यह सुनकर माता पार्वती को बहुत क्रोध आया। माता पार्वती की भक्ति एवं प्रेम को देखकर शिवजी ने उन्हें अपना वास्तविक रूप दिखाया। यह देख माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुई।


यक्ष अवतार: यक्ष अवतार शिव जी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए लिया था। हिन्दू धर्म के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुन्द्र-मंथन के दौरान जब भयंकर विश निकला तब भगवान शिव ने उस विश को ग्रहण कर अपने कंठ में रोक लिया।


Yaksh Avatar


इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए और साथ ही उन्हें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे शक्तिशाली हैं। देवताओं के इसी अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान शिव ने यक्ष का रूप धारण किया और देवताओं के आगे एक तिनका रखा और उसे काटने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने के बाद भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए। तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं।


सभी देवताओं ने भगवान शिव की पूजा की और अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।

Post a Comment

Previous Post Next Post