रामायणकाल और महाभारत काल में लगभग
2000 वर्षों का अंतर है। विभिन्न पुराणों और धर्म ग्रन्थों में किए गए
वर्णन के अनुसार रामायण काल के पांच पात्र अथवा व्यक्ति जो महाभारत काल में भी
उपस्थित थे। कौन-कौन थे वो व्यक्ति जो रामायण काल में भी और महाभारत काल में भी थे? आइये जानते है।
जामवंत जी: जामवंत जी को तो आप जानते ही
होंगे। रामायण में आपने जामवंत जी को देखा होगा जो वानर सेना में एकमात्र रीछ थे।
विभिन्न शास्त्रों के अनुसार जामवंत जी का जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ
था और जामवंत जी सतयुग और त्रेता युग दोनों में मोजूद थे। द्वापर युग में भी इनके जीवित
होने का वर्णन मिलता है। जामवंत जी बहुत ही शक्तिशाली थे परंतु रामायण काल में
बूढ़े हो गए थे। कहते हैं कि जामवंत जी समुन्द्र को लांघने में भी समर्थ थे। लेकिन
त्रेता युग में जब वे बूढ़े हो चले तो उन्होने हनुमान जी को उनकी शक्तियाँ याद
दिलाई और उनसे विनती की कि वे ही समुन्द्र को लांघिए।
वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में जामवंत जी का विशेष रूप
से उल्लेख किया गया है, जब हनुमान जी ऋषि के श्राप के कारण अपनी
सारी शक्तियाँ भूल जाते हैं तो जामवंत जी ही उन्हें याद दिलाते हैं। जामवंत जी को
परम ज्ञानी और अनुभवी माना जाता था। उन्होने ही हनुमान जी से हिमाल्य पर्वत से
प्राप्त होने वाली चार दुर्लभ औषधियों का वर्णन किया था जिनमें से एक संजीवनी बूटी
भी थी। जब श्री राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ तो रावण समस्त कुल के साथ पराजित
हो गया। युद्ध की समाप्ती हुई और श्री राम जी के वनवास का समय भी पूर्ण हो चला था।
तो भगवान राम सभी से विदा लेकर अयोध्या की ओर प्रस्थान करने लगे।
तब जामवंत जी ने कहा, हे
प्रभु! इस युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला किन्तु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई
अवसर नहीं मिला।
तब भगवान श्री राम ने कहा, तुम्हारी यह इच्छा
अवश्य पूर्ण होगी। जब मैं द्वापर युग में फिर से अवतार लूँगा, तब तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा। तब तक तुम इसी जगह पर तपस्या
करो।
समय बीतता चला गया और द्वापर युग आरंभ हो गया। भगवान श्री
कृष्ण का विवाह सत्यभामा के साथ हुआ। तभी एक परिस्थिति ऐसी बनी कि सत्यभामा के
पिता सतराजित ने भगवान श्री कृष्ण पर समयनतक मणि कि चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया।
इस मणि की खोज में श्री कृष्ण निकल पड़े। खोजते-खोजते श्री
कृष्ण एक गुफा के पास जा पहुँचे। उस गफा में जामवंत जी अपनी पुत्री जामवंती के साथ
रहते थे और वह मणि भी जामवंत के पास ही थी। उन्होने जामवंत जी से कहा कि मणि मुझे
दे दो। परंतु जामवंत जी ने मणि देने से इंकार कर दिया।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण और जामवंत जी के बीच भीषण युद्ध
हुआ। जामवंत जी भगवान श्री कृष्ण के सामने नहीं टिक पाए और पराजित हो गए। तब
जामवंत जी को एहसास हुआ कि श्री कृष्ण ही भगवान श्री राम है। क्योंकि उनके अलावा
जामवंत जी को कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। वे उनको चरणों में गिर गए और उनको
प्रणाम किया।
उन्होने निवेदन किया कि हे प्रभु, आप मेरी पुत्री जामवंती को स्वीकार करें और उससे विवाह करें। भगवान ने
सहज भाव से उनकी विनती को स्वीकार किया और जामवंती के साथ विवाह किया। जामवंती और
श्री कृष्ण के संयोग से उन्हें महाप्रतापी पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम सांब रखा
गया। आगे चलकर सांब ही श्री कृष्ण के कुल के विनाश का कारण बना।
इस तरह जामवंत जी रामायण काल के अलावा महाभारत काल में भी
मौजूद थे।
पवनपुत्र हनुमान जी: हनुमान जी को
चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। इसीलिए वे त्रेता युग से लेकर हर युग में
मौजूद हैं। और आज भी यानि कि कलयुग में भी भगवान हनुमान जी पृथ्वी लोक में मौजूद
हैं। सर्वशक्तिशाली, पराक्रमी और अनन्य भक्ति के प्रतीक होने के
कारण ही भगवान श्री राम रावण से युद्ध में बहुत ही सहजता से विजय प्राप्त कर पाए।
त्रेता युग में भगवान श्री राम के साथ भी हनुमान जी थे और द्वापर युग में श्री
कृष्ण के समय भी हनुमान जी मौजूद थे। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि महाभारत के
युद्ध में हनुमान जी भी एक कारण थे जिससे पांडवों को विजय मिली थी।
अर्जुन और श्री कृष्ण को हनुमान जी ने उनकी रक्षा का वचन
पहले ही दे दिया था। तभी वे अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान हो गए थे अन्यथा
अर्जुन का रथ कर्ण के एक बाण को भी सहन नहीं कर सकता था।
युद्ध के पूर्व हनुमान जी ने ही भीम का अहंकार दूर किया था।
जब जंगल में भीम उनकी पुंछ हिलाने तक में समर्थ नहीं थे और बाद में हनुमान जी भीम
को दर्शन देते हैं और तब भीम का एहंकार चूर चूर हो जाता है।
यह कथाएँ बताती है कि हनुमान जी रामायण काल तथा महाभारत काल
में भी मौजूद थे।
मयासुर: मयासुर रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता और
रावण के ससुर थे। जैसे देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी थे उसी तरह असुरों के
शिल्पी मयासुर थे। रामायण काल में मयासुर ने कई विशालकाए भवन और शस्त्रों
का निर्माण किया था। जब हनुमान जी ने लंका को जलाकर राख़ कर दिया था तब मयासुर ने
ही अपनी शक्तियों से लंका को पहले जैसा कर दिया था। महाभारत काल में मयासुर से ने
ही युधिष्ठिर के लिए एक अद्धभूत सभा भवन का निर्माण किया था। जो मायासभा के नाम से
प्रसिद्ध हुआ था।
इसी सभा के वैभव को देखकर दुर्योधन पांडवों से ओर भी ज़्यादा
ईर्ष्या करने लगा था। मयासुर ने ही द्वारका नागरी का निर्माण किया था। इसी
तरह मयासुर भी रामायण काल तथा महाभारत काल में मौजूद था।
भगवान परशुराम: भगवान परशुराम जी रामायण काल में
मौजूद थे। आपने उन्हे माता सीता के स्वयंवर में देखा होगा। जब श्री राम ने भगवान
शिव का धनुष तोड़ा तब तुरंत ही क्रोधित हुए परशुराम जी राजा जनक की सभा में आते
हैं।
क्रोधित परशुराम जी को जब भगवान श्री राम अपना विष्णु रूप
दिखते हैं तब परशुराम जी शांत होते है।
भगवान परशुराम का महाभारत काल में होने का भी उल्लेख मिलता
है। भगवान परशुराम जी भीष्म पितामह के गुरु बनते हैं और एक प्रसंग के अनुसार
परशुराम जी का भीष्म के साथ भयंकर युद्ध भी होता है। जब परशुराम जी भगवान श्री
कृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान करते है इसका उल्लेख भी मिलता है और जब वे महारथी
कर्ण को शस्त्र विद्या देते हैं। इन कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम जी रामायण काल
तथा महाभारत काल में भी उपस्थित होते हैं।
महऋषि दुर्वासा: महऋषि दुर्वासा
अपने क्रोध के लिए और श्राप देने के लिए जाने जाते हैं। रामायण के अनुसार महऋषि दुर्वासा राजा दशरथ के भविष्यवक्ता थे। उन्होने रघुवंश के
बहुत सी भविष्यवाणियाँ की थी। यह महऋषि दुर्वासा ही थे जिनके कारण लक्ष्मण जी को मृत्युदंड मिला था
और भगवान श्री राम जी को भी बैकुंठ धाम जाना पड़ा।
महाभारत में महऋषि दुर्वासा ने द्रौपदी और पांडवों
की परीक्षा लेने के लिए अपने 10,000 शिष्यों के साथ उनकी कुटिया में पहुंचे
थे। यह सभी घटनाएँ बताती हैं कि महऋषि दुर्वासा रामायण काल में मौजूद थे और
महाभारत काल में भी मौजूद थे।
कई पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, अश्वत्थामा,
राजा बलि, हनुमान जी, विभीषण जी, कृपाचार्य, भगवान परशुराम,
ऋषि मार्कण्डेय, वेदव्यास, जामवंत जी
और भी कई सारे ऋषि-मुनि ऐसे हैं जिनका उल्लेख सभी युगों में पाया जाता है और कहते
हैं कि इनमें से कुछ आज भी सह शरीर पृथ्वी पर जीवित है।
तो ये थे वह 5 योद्धा और महारथी जो रामायण काल और महाभारत काल में भी मौजूद थे।
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