भारत के 5 ऐसे रहस्यमयी मंदिर जहां हर रोज़ होते हैं चमत्कार

5 Chamatkari mandir

प्राचीन काल में जब मंदिर बनाए जाते थे तो वस्तु और खगोल विज्ञान का ध्यान रखा जाता था। इसके अलावा राजा-महाराजा अपना खज़ाना छुपाने के लिए भी उसके ऊपर मंदिर बना दिया करते थे और खजाने तक पहुँचने के लिए गुप्त रास्ते से आते-जाते थे। इन मंदिरों का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है। ऐसे ही पाँच मंदिरों के बारे में हम आपको बताते हैं जिनके रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया और वहाँ हर रोज़ कोई न कोई नया चमत्कार होता है।


#1 पद्धनाभस्वामी मंदिर (केरल)


Padmanabha Temple


पद्धनाभस्वामी मंदिर केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित भगवान श्री हरि विष्णु का ये प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल विष्णु भक्तों का एक महत्वपूर्ण आराधना स्थल है। इस मंदिर के साथ एक पोरनिक कथा जुड़ी हुई है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी। जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया। इस मंदिर की देखभाल त्रावणकोर का राजपरिवार करता रहा है। यह मंदिर हाल ही के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय चर्चाओं के केंद्र बिन्दु में रहा। सन 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर घटित अधिकारियों की 5 सदस्यों के पैनल ने मंदिर के नीचे बने कुल 6 प्राचीन तैखानों में से 5 तैखानों को खोल दिया जोकि सदियों से बंद थे। हालांकि इनमें से एक तैखाना तैखाना संख्या B का दरवाज़ा अब तक नहीं खोला जा सका।


Padmanabha mandir khazana


सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तैखाने को खोलने पर फिलहाल रोक लगा दी है। पूरी दुनिया का आश्चर्य का ठिकाना उस समय नहीं रहा जब मंदिर के नीचे बने पाँच तैखानों के अंदर तकरीबन 1 लाख करोड़ का खज़ाना प्राप्त हुआ। इनमें बहुमूल्य हीरे-जवाहरात के अलावा सोने के भंडार और कई प्राचीन मूर्तियाँ भी निकली। साथ ही हर दरवाज़े के पार अधिकारियों के पैनल को प्राचीन चिन्हों के अंबार भी मिलते गए। मगर जब अधिकारियों का ये दल आखरी तैखाने संख्या नंबर B तक पहुंचा तो लाख मशक्कत के बावजूद भी वे उस दरवाज़े को खोलने में कामयाब नहीं हो पाए।


Padmanabha vault gate

इस मंदिर के नीचे बने पहले पाँच तैखानों के खोलने के तीन हफ्ते बाद ही टी. पी. सुंदराजन यानि वो व्यक्ति जिन्होने अदालत में उन दरवाजों को खोलने की याचिका दाखिल की थी पहले वे बीमार पड़े और फिर हार्ट-अटैक (Heart-Attack) से उनकी मृत्यु हो गई।


अगले ही महीने मंदिरों के भक्तों के एक संस्थान ने ये चेतावनी जारी कर दी की अगर किसी ने भी उस आखरी तैखाने को खोलने की कोशिश की तो उसका परिणाम बहुत ही बूरा हो सकता है।


इसके बाद त्रावणकोर के राजवंश और ज्योतिषों के बीच गहन चर्चा हुई। इस चर्चा में ज्योतिषों ने अपनी गणना के बाद यह कहकर सबको चौंका दिया कि अगर तैखाना नंबर B को खोलने का प्रयास किया गया तो ना सिर्फ केरल बल्कि पूरी सृष्टि में भरी तबाही हो सकती है।


#2 जगन्नाथ मंदिर (ओडिशा)


Sri jagannath mandir

ओडिशा की धार्मिक नागरी पुरी में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलराम, और देवी सुभद्रा का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ प्रत्येक वर्ष जून-जुलाई में विशाल रथ यात्रा का भव्य आयोजन होता है। इस रथ की रस्सियों को खींचने और छूने के लिए श्रद्धालु पृथ्वी के कोने-कोने से यहाँ आते हैं। क्योंकि भगवान जगन्नाथ के भक्तों की मान्यता है कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुरी मंदिर का ये भव्य रूप 7वीं शताब्दी में निर्मित किया गया है। वर्तमान में इस मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनंत्वर्मन चोड़गंग देव ने आरंभ किया था। इस श्री कृष्ण मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे अनोखे तथ्य है जिन्हे जानकार आप दंग रह जाएंगे।


वास्तव में यह मंदिर आस्था के साथ-साथ अपने इन रहस्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के ऊपर लहराता हुआ ध्वज हमेशा वायु की विपरीत दिशा में लहराता है। सामान्य दिनों के समय वायु समुन्द्र से ज़मीन को ओर आती है और शाम के समय इसके विपरीत चलती है। लेकिन जगन्नाथ पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर तटों पर आमतोर पर हवा समुन्द्र से ज़मीन की ओर आती है लेकिन यहाँ पर हवा ज़मीन से समुन्द्र की ओर जाती है।


मंदिर के शीर्ष पर लगा सुदर्शन चक्र पुरी में किसी भी स्थान से आप इसको देखेंगे तो आपको ये हमेशा सीधा ही दिखाई देगा। इसे नील चक्र भी कहते हैं और ये अष्ट धातु से निर्मित है।


एक आश्चर्य की बात ये है कि मंदिर के ऊपर गुंबद के आस-पास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया और ना ही इसके ऊपर से कोई विमान उड़ाया जा सकता है। इस मंदिर के ऊपर हवाई-जहाज़ या हेलीकाप्टर उड़ाने की सख्त मनाही है।


इस मंदिर के शिखर की परछाई सदैव अदृश्य (दिखाई नहीं देती) रहती है। यह दुनिया का सबसे भव्य अथवा ऊंचा मंदिर है। मंदिर के पास खड़े होकर इसका गुंबद देख पाना संभव नहीं है और भी रहस्य आगे पढ़ें...  


#3 करनी माता का मंदिर (राजस्थान)


Karni mata mandir

करनी माता का यह मंदिर बीकानेर, राजस्थान में स्थित है। यह बहुत अनोखा मंदिर है। इस मंदिर में लगभग 20 हज़ार काले रंग के चूहे रहते हैं और हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही चूहे ही चूहे नज़र आते हैं।


Karni mata mandir ke chuhe


करनी देवी जिन्हे माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। इतने सारे चूहे होने के कारण इसे चूहों वाला मंदिर भी कहा जाता है। यहाँ चूहों को “काबा” कहते हैं और यहा इनको भोजन कराया जाता है और इनकी रक्षा की जाती है। इस मंदिर में इतने सारे चूहे हैं कि आपको अपने पैर घसीटते हुए चलना पड़ता है। अगर कोई चूहा आपके पैर के नीचे आ गया तो अप-शगुन माना जाता है।


ऐसी भी मान्यता है कि अगर चूहा आपके पैर के ऊपर से चला गया तो समझ लीजिये आपके ऊपर माँ करनी की कृपा हो गई। आश्चर्य की बात ये है कि इतने चूहे होने के बावजूद भी मंदिर में बिलकुल भी बदबू नहीं है। आज तक कोई बीमारी नहीं फैली और यहाँ तक की चूहों का जूठा खाने से आज तक कोई भी भक्त बीमार नहीं पड़ा।


यहाँ काले चूहों के साथ-साथ कुछ सफ़ेद चूहे भी रहते हैं। माना जाता है यदि आपको कोई सफ़ेद चूहा दिखाई दे गया तो आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।


Karni mata mandir ka prasad


इस मंदिर के चूहों की एक विशेषता है कि मंदिर में सुबह 5 बजे होने वाली मंगला आरती और शाम को 7 बजे होने वाली संध्या आरती के वक़्त अधिकांश चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं। इन दो वक़्त चूहों की सबसे ज़्यादा धमचोंकड़ी होती है। माँ को चढ़ाने वाले प्रशाद को सबसे पहले चूहे खाते हैं फिर उसे भक्तों में बांटा जाता है।


मंदिर में रहने वाले सभी चूहे करनी माता की संतान माने जाते हैं।


#4 शनिदेव मंदिर (शिंगणापुर)


Shani shingnapur mandir


महाराष्ट्र में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर का अपना एक अलग महत्व है। पहन पर शनिदेव जी विराजमान है किन्तु मंदिर नहीं, यहाँ घर है परंतु दरवाज़ा नहीं। इस मंदिर में शनिदेव की काले रंग की पाषण प्रतिमा है। इस प्रतिमा को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार यह शिला एक गडरिये को मिली थी। शनिदेव ने उसे आदेश दिया कि इस प्रतिमे को खुले परिसर में रखा जाए व इस पर तेल द्वारा अभिषेक किया जाए। प्रभु का ये आदेश पाकर उसने प्रतिमा को यहीं स्थापित किया। तब से एक चबूतरे पर शनिदेव जी का पूजन अथवा तेल अभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है।


शनिदेव जी की मूर्ति काले रंग की है और 5 फुट 9 इंच ऊंची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट पहर धूप हो, आँधी आए या तूफान हो य सर्दी हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। लगभग 3 हज़ार जनसंख्या के इस गाँव में एक भी घर में दरवाज़ा नहीं है। कोई भी कुंडी य ताला लगाकर नहीं जाता। इतना ही नहीं घर में लोग लॉकर य सूटकेस भी नहीं रखते। ऐसा केवल शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।


लोग घर की मूल्यवान वस्तुएँ, गहने-जवाहरात, कपड़े, रूपए, पैसे आदि रखने के लिए थैली या डब्बे का प्रयोग करते हैं। यहाँ पर कभी कोई चोरी नहीं हुई। यहाँ पर रहने वाले व्यक्ति कभी भी अपने वाहनों पर ताला नहीं लगते। कितना भी बड़ा मेला क्यों ना हो कभी किसी वहाँ की चोरी नहीं हुई।


शनि शिंगणापुर में UCO बैंक की एक शाखा भी है। इस बैंक में कोई दरवाज़ा नहीं है। यहाँ पर धूल-मिट्टी से बचने के लिए केवल एक काँच का दरवाज़ा है। यह दुनिया का एकमात्र unlock यानि कि बिना  किसी ताले का बैंक है।


नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इस लिए कहा जाता है क्योंकि यह एक राशि में सबसे लंबे तक विराजमान रहते हैं। शनि की अच्छी दृष्टि से रंक भी राजा बन जाता है और अशुभ दृष्टि से देवता, असुर, नाग, मनुष्य, पशु-पक्षी चाहे वे कोई भी हो वे नष्ट हो जाता है।


#5 माँ ज्वालादेवी मंदिर (हिमाचल प्रदेश)


Jwala devi mandir


कांगड़ा घाटी से 30 किलोमीटर दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है। ज्वालामुखी मंदिर को नगरकोट तथा जोतों वाला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेया पांडवों को जाता है। उनके द्वारा इस पावन-पवित्र स्थान की खोज हुई थी। इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते हैं। इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने वर्ष 1835 में इस मंदिर का पुन: निर्माण किया।


यहाँ पर भूगर्भ से निकलती नौं ज्वालाओं की पूजा होती है। यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहाँ किसी मूर्ति की पूजा नहीं बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौं ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौं अलग-अलग जगह ज्वालाएँ निकाल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया।


इन नौं ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिमलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।


ज्वाला देवी मंदिर में जल रही प्राकृतिक ज्योति का रहस्य वैज्ञानिक इतने सालों बाद भी नहीं खोज पाए। पिछले अनेक सालों से कई वैज्ञानिकों ने यहाँ के भूगर्भ का कई किलोमीटर तक चप्पा चप्पा छान मारा पर कहीं भी गैस या तेल के अंश नहीं मिले।


Akbar ka sone ka chatra


कहते हैं जब अकबर ने ज्वाला देवी के चमत्कारों के बारे में सुना उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की ओर चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर उसके मन में शंका हुई तो उसने अपनी सेना को आदेश दिया और पूरे मंदिर में पानी भरवा दिया। लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी। तब जाकर उसे माता की महिमा का एहसास हुआ और उसने वहाँ सवा मन यानि कि 50 किलो सोने का छत्तर चढ़ाया। लेकिन माता ने वह छत्तर स्वीकार नहीं किया और वह छत्तर वहीं गिर गया। आप आज भी वह अकबर द्वारा चढ़ाया हुआ सोने का छत्तर ज्वालामुखी मंदिर में देख सकते हैं और रहस्य जानिए...

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