जब जब भगवान की मृत्यु के विषय में चर्चा होती है उसका अर्थ मृत्यु नहीं होता। भगवान अदृश्य होते हैं वे कभी नहीं मरते। वे अजन्मे है। जब जब धर्म विलुप्त होने की कगार पर होता है तब तब भगवान धर्म की पुन: स्थापना के लिए धरती पर अवतार लेते हैं।
महाभारत में जब श्री कृष्ण की मृत्यु जरा नाम के शिकारी का बाण लगने के कारण हुई, तब पांडवों ने श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार किया। ऐसा कहा जाता है जब उनका दाह संस्कार हुआ, तब उनके शरीर का एक अंग नहीं जला था। ऐसा क्यों हुआ? आइये जानते हैं इस कथा में।
श्रीमदभगवद्गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की मर्ज़ी के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं होता। उनकी इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं। वे ही परमपिता परमात्मा है। महाभारत का युद्ध भी भगवान श्री कृष्ण की इच्छा से ही हुआ। महाभारत के माध्यम से ही उन्होने धर्म का सही अर्थ और मार्ग बताया। उन्होने भी धर्म का यानि कि पांडवों का पक्ष लिया। चूंकि कौरव अधर्म के पक्ष में थे तो भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन को समझाने का बहुत प्रयास किया। परंतु अहंकारी और घमंडी दुर्योधन नहीं माना। तब महाभारत युद्ध के अतिरिक्त और कोई भी उपाय नहीं था।
महाभारत युद्ध के समय जब दुर्योधन का अंत हुआ। तब उसकी माँ गांधारी शोकाकुल हो गई। वो पुत्रों कि मृत्यु पर बहुत दुखी हुई और उन्होने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया कि आज से ठीक 36 वर्ष बाद उनकी तथा उनके समस्त कुल का नाश हो जाएगा। वास्तव में श्री कृष्ण श्राप के कारण नहीं बल्कि स्वयं की इच्छा से ही संसार से अदृश्य हुए थे। क्योंकि जो भी इस संसार में जन्म लेगा उसके दाह का विनाश निश्चित है।
कई मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण का दाह संस्कार किया। जब उनकी पूरी देह जल गई परंतु हृदय जलकर नष्ट नहीं हुआ और अंत तक जलता रहा। तो उनके हृदय को जल में प्रवाहित किया गया। उनकी देह का यह हिस्सा राजा इंद्रियम को प्राप्त हुआ। राजा इंद्रियम भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। उन्होने भगवान श्री कृष्ण का हृदय भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा में स्थापित कर दिया।
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